Shree Durga Stuti | Shree Durga Kavach – Chaman Lal Bhardwaj | श्री दुर्गा स्तुति | श्री दुर्गा कवच
यह पोस्ट चमन लाल भारद्वाज द्वारा रचित श्री दुर्गा स्तुति और श्री दुर्गा कवच का हिंदी पाठ प्रस्तुत करती है। इस पृष्ठ पर केवल मूल पाठ दिया गया है।
This post presents the original Hindi textbook of Shree Durga Stuti and Shree Durga Kavach, collected by Chaman Lal Bhardwaj. Only the original textbook is handed then.
श्री दुर्गा स्तुति
लेखक / स्रोत: Chaman Lal Bhardwaj
यहाँ केवल हिंदी स्तुति का पाठ दिया गया है। अर्थ/अनुवाद शामिल नहीं
हैं।
॥ श्री दुर्गा कवच ॥
ऋषि मारकंडे ने पूछा जभी।
दया करके ब्रह्मा जी बोले तभी।
कि जो गुप्त मन्त्र है संसार में।
हैं सब शक्तियाँ जिसके अधिकार में।
हर इक का जो कर सकता उपकार है।
जिसे जपने से बेड़ा ही पार है।
पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का।
जो हर काम पूरा करे सवाली का।
सुनो मारकडे मैं समझाता हूँ।
मैं नव दुर्गा के नाम बतलाता हूँ।
मात कवच की मैं सुन्दर चौपाई बना।
भारदा जो अत्यन्त है गुप्त देऊँ बता।
दोहानव दुर्गा का कवच यह पढ़े जो मन चित लाये।
उस पे किसी
प्रकार का कभी कष्ट न आये।
कहो जय जय महारानी की,
जय दुर्गा अष्ट भवानी की।
पहली शैलपुत्री कहलावे,
दूसरी ब्रह्मचारणी मन भावे।
तीसरी चन्द्रघटा शुभनाम,
चौथी कुष्मांडा सुख धाम।
पांचवी देवी अस्कन्धमाता,
छटी कात्यायनी विख्याता।
सातवीं काल रात्रि महामाया,
आठवीं महां गौरी जगजाया।
नौंवी सिद्धि दात्री जग जाने,
नव दुर्गा के नाम बखाने।
महा संकट में वन में रण में,
रोग कोई उपजे निज तन में।
महा विपत्ति में व्योहार में,
मान चाहे जो राज दरबार में।
शक्ति कवच को सुने सुनाये,
मनोकामना सिद्धि नरपाये।
दोहाचामुण्डा है प्रेत पर वैष्णवी गरुड़ असवार।
बैल चढ़ी
महेश्वरी, हाथ लिये हथियार।
हंस सवारी वाराही की,
मोर चढ़ी दुर्गा कौमारी।
लक्ष्मी देवी कमल आसीना,
ब्रहमी हंस चढ़ी ले वीणा।
ईश्वरी सदा बैल असवारी,
भक्तन की करती रखवारी।
शंख चक्र शक्ति त्रिशूला,
हल मसूल कर कमल के फूला।
दैत्य नाश करने के कारण,
रूप अनेक कीने है धारण।
बार बार चरणन सिर नाऊं,
जगदम्बे के गुण को गाऊं।
कष्ट निवारण बलशाली माँ,
दुष्ट संघारण महाकाली मां।
कोटि कोटि माता प्रणाम,
पूर्ण कीजो मेरे काम।
दया करो बलशालिनी,
दास के कष्ट मिटाओ।
'चमन' की रक्षा को सदा,
सिंह चढ़ी माँ आओ।
कहो जय जय महारानी की,
जय दुर्गा अष्ट भवानी की।
अग्नि से अग्नि देवता,
पूर्व दिशा में ऐन्द्री।
दक्षिण में वाराही मेरी,
नैऋत्य में खड़ग धारणी।
वायु में माँ मृगवाहिनी,
पश्चिम में देवी वारुणी।
उत्तर में माँ कौमारी जी,
ईशान में शूलधारी जी।
ब्रह्माणी माता अर्श पर,
माँ वैष्णवी इस फर्श पर।
चामुण्डा दस दिशाओं में,
हर कष्ट तुम मेरा हरो।
संसार में माता मेरी,
क्षा करो, रक्षा करो।
सन्मुख मेरे देवी जया,
पाछे हो माता विजया।
अजिता खड़ी बायें मेरे,
अपराजिता दायें मेरे।
उद्योतिनी माँ शिखा की,
माँ उमा देवी सिर की ही।
माला धारी ललाट की,
और भृकुटी की माँ यशस्वनी।
भृकुटी के मध्य त्रिनेत्रा,
यम घण्टा दोनों नासिका।
काली कापोलों की कर्ण,
मूलों की माता शंकरी।
नासिका में अंश अपना,
माँ सुगन्धा तुम धरो।
संसार में माता मेरी,
रक्षा करो, रक्षा करो।
ऊपर व नीचे होठों की,
माँ चर्चका अमृतकली।
जीभा की माता सरस्वती,
दांतो की कौमारी सती।
इस कंठ की माँ चण्डिका,
और चित्रघण्टा घण्टी की।
कामाक्षी माँ ठोड़ी की,
माँ मंगला इस वाणी की।
ग्रीवा की भद्रकाली माँ,
रक्षा करें बलशाली मां।
दोनों भुजाओं की मेरे,
रक्षा करे धनु धारणी।
दो हाथों के सब अंगो की,
रक्षा करे जगतारणी।
शूलेश्वरी, कूलेश्वरी,
महादेवी,शोक विनाशनी।
छाती स्तनों और कन्धो की,
रक्षा करें जगवासिनी।
हृदय उदर और नाभिके,
कटि भाग के सब अंगो की।
गुहमेश्वरी माँ पूतना,
जग जननी श्यामा रंग की।
घुटनों जंघाओं की करे,
रक्षा वोह विन्ध्य वासिनी।
टखनों व पाँव की करे,
रक्षा वो शिव की दासिनी।
दोहा
रक्त मांस और हड्डियों से जो बना शरीर।
आंतो और पित वास में भरा अग्न और नीर।
बल बुद्धि अहंकार और प्राण अपान समान।
सत, रज, तम के गुणों में फंसी है यह जान।
धार अनेकों रुप ही रक्षा करियो आन।
तेरी कृपा से ही माँ 'चमन' का है कल्याण।
आयु यश और कीर्ति धन सम्पत्ति परिवार।
ब्रह्माणी और लक्ष्मी पार्वती जगतार ।
विद्या दे माँ सरस्वती सब सुखों की मूल।
दुष्टों से रक्षा करो हाथ लिये त्रिशूल।
भैरवी मेरी भार्या की रक्षा करो हमेश।
मान राज दरबार में देवें सदा नरेश।
यात्रा में दुःख कोई न मेरे सिर पर आये।
कवच तुम्हारा हर जगह मेरी करे सहाये।
ऐ जग जननी कर दया इतना दो वरदान।
लिखा तुम्हारा कवच यह पढ़े जोनिश्चय मान।
मनवांछित फल पाए वह मंगल मोद बसाए।
कवच तुम्हारा पढ़ते ही नवनिधि घर आये।
मनवांछित फल पाए वह मंगल मोद बसाए।
कवच तुम्हारा पढ़ते ही नवनिधि घर आये।
ब्रह्मा जी बोले सुनो मारकन्डे, यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया।
रहा आज तक था गुप्त भेद सारा, जगत की भलाई को मैंने बताया।
सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित, है मिट्टी की देह को इसे जो पहनाया।
'चमन' जिसने श्रद्धा से इस को पढ़ा जो, सुना तो भी मुँह मांगा वरदान पाया।
जो संसार में अपने मंगल को चाहे, तो हरदम यही कवच गाता चला जा।
बियावान जंगल, दिशाओं दशों में, तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा।
तू जल में, तू थल में, तू अग्नि पवन में, कवच पहन कर मुस्कराता चला जा।
निडर हो विचर मन जहाँ तेरा चाहे, 'चमन' कदम आगे बढ़ाता चला जा।
तेरा मान धन धाम इससे बढ़ेगा, तू श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाये।
यही मन्त्र, यन्त्र यही तन्त्र तेरा, यही तेरे सिर से है संकट हटाये ।
यही भूत और प्रेत के भय का नाशक, यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढ़ाये।
इसे नित्य प्रति 'चमन' श्रद्धा से पढ़ कर। जो चाहे तो मुँह मांगा वरदान पाये।
दोहा
इस स्तुति के पाठ से पहले कवच पढ़े।
कृपा से आदि भवानी की बल और बुद्धि बढ़े।
श्रद्धा से जपता रहे जगदम्बे का नाम।
सुख भोगे संसार में अन्त मुक्ति सुखधाम।
कृपा करो मातेश्वरी, बालक 'चमन' नादान।
तेरे दर पर आ गिरा, करो मैय्या कल्याण।
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