श्री मदनमोहन मंदिर वृंदावन की अद्भुत कथा

श्री वृंदावन में श्री सनातन गोस्वामी जी के सामने महावन में एक अद्भुत लीला हुई। उन्होंने देखा कि कुछ गोप बालक खेल रहे थे, और एक श्याम बालक श्री सनातन जी की ओर मुस्कुराते हुए देख रहा था। वह बालक उसे गले लगाने के लिए दौड़े, लेकिन जैसे ही वह पास पहुंचे, वह बालक गायब हो गया। सनातन जी भावविभोर होकर रोने लगे और मूर्छित होकर गिर पड़े। उन्हें एक सपना आया, जिसमें उन्होंने वही बालक श्री कृष्ण का रूप देखा। श्री कृष्ण ने कहा, "अगर आप मुझसे मिलना चाहते हैं, तो मैं मथुरा में श्री परशुराम चौबे जी के घर में रह रहा हूं। आप वहां जाइए और मुझे अपने साथ ले आइए।"

श्री सनातन जी ठाकुर मदनमोहन जी से मिलने गए

अगले दिन सुबह श्री सनातन जी मधुकरी के लिए श्री परशुराम चौबे जी के घर पहुंचे। वहां उन्हें उस बालक के रूप में श्री ठाकुर मदनमोहन जी के दर्शन हुए। वह उनका ध्यान करते रहे और उनके प्रेम में डूब गए। पहले वे मधुकरी के लिए महीनों में एक बार जाते थे, लेकिन अब उन्होंने प्रतिदिन वही रास्ता अपनाया और ठाकुर जी के दर्शन के लिए जाते रहे। एक दिन घर की वृद्धा ने देखा कि श्री सनातन जी घंटों ठाकुर जी के सामने खड़े हैं और रो रहे हैं।

वृद्धा ने कहा, "बाबा, इनको देख रहे हो? इनसे दूर रहो! इनसे मेरा सब कुछ नष्ट हो गया। मेरा बड़ा परिवार था, खूब संपत्ति थी, लेकिन जब से ये हमारे घर आए, सब समाप्त हो गया। मेरा परिवार खत्म हो गया, सब संपत्ति चली गई, और मैं अकेली रह गई।" इसलिए श्री रूप गोस्वामी जी कहते हैं कि अगर आप अपने परिवार से मोह-ममता रखते हैं तो श्री राधा गोविंद देव जी से आंखें मत मिलाना। अगर मिलाईं, तो आप किसी काम के नहीं रहेंगे।

सनातन जी ने कहा, "माता जी, आप ऐसा मत कहिए। मैं भी यही स्थिति जानता हूं, मेरी भी यही दशा हो गई है। जब से मैंने उनसे प्रेम किया है, तब से मेरा सर्वनाश हो गया। जो कुछ मेरे पास था, अब कुछ भी नहीं बचा। यह उनका चमत्कार है। महापुरुषों का यही विनोद है। जब ठाकुर जी का कृपा कटाक्ष होता है, तो सारी मलिन माया को पार कर हमें अपनी लीला में सम्मिलित कर लेते हैं।

श्री सनातन जी ठाकुर मदनमोहन जी को वृंदावन लेकर आए

वृद्धा ने पूछा, "क्या ये आपको पसंद आ गए हैं?" सनातन जी ने कहा, "मैं तो पहले ही इनके नेत्रों में समा चुका हूँ।" वृद्धा ने कहा, "मैं वृद्ध हो गई हूं, और सोच रही थी कि अब इनकी सेवा कौन करेगा, क्योंकि मेरे परिवार में कोई नहीं बचा।" यह मत समझिए कि ठाकुर जी से प्रेम करने से आपका परिवार नष्ट हो जाएगा, ऐसा नहीं है। इसका आंतरिक रहस्य यह है कि जब ठाकुर जी ने मदनमोहन जी को हमारे घर भेजा, तो उन्होंने मेरे परिवार को अपनी नित्य लीला में शामिल कर लिया।

वृद्धा ने कहा, "अब मेरी उम्र बढ़ गई है, और मुझे इनकी सेवा करने का कोई तरीका नहीं दिखाई दे रहा है। मुझे संतोष हुआ है कि आपके नेत्रों में ठाकुर जी के लिए प्रेम देखकर मुझे विश्वास है कि आप उनकी सेवा करेंगे।" श्री सनातन गोस्वामी जी ने कहा, "अगर ऐसा है, तो आप मुझे उन्हें दे दीजिए।" वृद्धा माता जी ने रोते हुए ठाकुर जी को श्री सनातन गोस्वामी जी को दे दिया। उन्होंने खुशी से ठाकुर मदनमोहन जी को श्रीधाम वृंदावन में लाकर आदित्य टीला पर विराजमान किया।

ठाकुर मदनमोहन जी को पसंद नहीं आया सनातन जी का रूखा-सूखा भोग

सनातन जी की दिनचर्या में मधुकरी ही उनका एकमात्र भोजन था। एक दिन वह भोजन लेते और कई दिनों तक उसी का प्रयोग करते। लेकिन अब जब ठाकुर जी उनके साथ थे, तो उन्होंने रोज़ आटा माँगकर ठाकुर जी को भोग अर्पित किया। ठाकुर जी को सूखी बाटी मिलती थी, जिसमें नमक भी नहीं था, तो वे उसे देखकर मुंह बना लेते थे।

एक दिन ठाकुर जी ने डरते हुए कहा, "बाबा, यह सूखी बाटी मेरे गले से नहीं उतरती, थोड़ी सी नमक डालिए।" श्री सनातन जी मुस्कुराए और बोले, "ठाकुर जी, मैं चैतन्य महाप्रभु की आज्ञा से वृंदावन में वैराग्य से रह रहा हूँ। आप मुझे फिर फँसाना चाहते हैं। आप हमेशा से चटोरे स्वभाव वाले रहे हैं। बचपन में भी यशोदा मैया के दिए माखन से संतुष्ट नहीं होते थे।"

ठाकुर जी ने यह सुना और कहा, "तो आप मुझे आदेश देते हैं कि मैं अपनी व्यवस्था खुद करूँ?" श्री सनातन जी बोले, "जी हां, आप खुद व्यवस्था कर लीजिए, मुझे इसमें कोई परेशानी नहीं है।" ठाकुर जी प्रसन्न हो गए।

ठाकुर मदनमोहन जी ने फँसाई एक व्यापारी की नाव

उसी समय, मुल्तान से रामदास कपूर जी एक विशाल नौका में विभिन्न रत्न, नमक और मेवा लेकर आगरा जा रहे थे। आदित्य टीला के पास उनकी नाव फँस गई। ठाकुर जी ने एक गोप बालक के रूप में आकर उन्हें बताया, "यह नाव यहाँ से नहीं निकलेगी, लेकिन आप श्री सनातन गोस्वामी जी के पास जाइए, उनकी सेवा करें और मन्नत मांगिए, तो आपकी नाव निकल जाएगी।"

रामदास कपूर जी ने श्री सनातन गोस्वामी जी से विनती की। सनातन जी ने उन्हें ठाकुर जी का दर्शन करने की सलाह दी, और जब रामदास जी ने ठाकुर जी के दर्शन किए, तो उनकी नाव बिना किसी धक्के के चल पड़ी। रामदास कपूर जी ने भगवान मदनमोहन जी के मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया और उसकी पूरी व्यवस्था की।

ठाकुर जी ने सनातन गोस्वामी जी को दी गोवर्धन शिला

श्री सनातन गोस्वामी जी गोवर्धन परिक्रमा करने जाते थे, लेकिन जब उनका शरीर वृद्ध हो गया, तो ठाकुर जी ने उन्हें एक शिला दी। यह शिला उनके लिए परिक्रमा का माध्यम बन गई, जिससे उन्हें वैसा ही आनंद प्राप्त होता जैसा गोवर्धन की परिक्रमा से होता। यह पावन शिला वर्तमान में श्री वृंदावन में श्री राधा दामोदर जी के मंदिर में स्थित है।

सनातन गोस्वामी जी की वृद्धावस्था देख शिव जी बनखंडी महादेव के रूप में प्रकट हुए

श्री सनातन गोस्वामी जी प्रतिदिन श्री गोपेश्वर महादेव जी के दर्शन करने जाते थे। महादेव जी ने जब देखा कि वे वृद्ध हो गए हैं, तो उन्होंने उन्हें दर्शन करने से मना किया। फिर शिव जी स्वयं बनखंडी महादेव के रूप में प्रकट हुए और श्री सनातन गोस्वामी जी ने उनका दर्शन करना शुरू किया।

सनातन गोस्वामी जी के पास थी लोहे को सोने में बदलने वाली पारसमणि

बंगाल का एक गरीब ब्राह्मण भगवान शंकर की आराधना कर रहा था। भगवान शंकर जी ने उसे श्री सनातन गोस्वामी जी से पारसमणि लेने का आदेश दिया। ब्राह्मण ने यह पारसमणि प्राप्त की, लेकिन उसे यह समझ में आया कि श्री सनातन गोस्वामी जी के पास जो मणि है, वही असली मणि है।

जब ब्राह्मण ने यह प्रश्न पूछा, तो श्री सनातन गोस्वामी जी ने कहा कि पारसमणि में अहंकार और बुराइयाँ छुपी हैं, इसलिए उसे दूर रखा है। उनके पास असली मणि वह मणि है जो भगवान श्री कृष्ण के चरणों में अनुराग रखने वालों को मिलती है।

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