परमात्मा जी तुम मेरे दिल में आ गए। तुमने मुझे अद्भुत प्रेम दिया ।हे परम पिता परमात्मा जी ये प्रेम तो मैंने तुमसे माता पृथ्वी के कल्याण के लिए मांगा था। परमात्मा जी आत्म चिंतन करते हुए तुमसे प्रार्थना की थी कि हे मेरे स्वामी भगवान् नाथ आज प्राणी के अनतर ह्दय में प्रेम और सद्भावना नहीं रही। हे परमात्मा जी मै तुमको अन्तर्मन से प्रार्थना करती हूं। कि हे स्वामी भगवान् नाथ तुमने मुझे जो प्रेम दिया है। प्रेम की खुश्बू से पृथ्वी माता लहराये प्रेम प्राणी मात्र के दिल में समा जाए। साधक आत्म चिंतन करते हुए अपने लिए कभी कुछ नहीं मांगता। क्योंकि आत्म चिंतन करते हुए संसारिक सुख गौण है। उसकी प्रार्थना तो जन जन के कल्याण के लिए होती है। साधक आत्म चिन्तन करते हुए कहता है कि हे मेरे प्रभु स्वामी भगवान् नाथ मेरे पास ये थोड़ी सी साधना है। मै तुम्हे समर्पित करता हूं जिस से देश और राष्ट्र की सुरक्षा हो जाए। साधक के दिल में एक ही चाहत होती है कि मैं पृथ्वी पर परमात्मा का चिन्तन करने के लिए आया हूँ।परमात्मा ने मुझे आत्म चिंतन के लिए भेजा है। परम पिता परमात्मा पग पग पर साधक की रक्षा करने के लिए आते हैं। साधक चिन्तन में गहरी डुबकी लगाना चाहता है। परमात्मा जी ये सब तो तुम मुझे अपना मान कर करा रहे हो। हे परमात्मा जी ये सब तो आपकी कृपा पर निर्भर है ।
अनीता गर्ग